फुरसत के पल

बाढ़ की संभावनाएँ....

बाढ़ की संभावनाएँ सामने है और नदियों के किनारे घर बने हैं.चीड़ बन में आँधियों की बात..

आओ कोलाहल को स्वर दें

बिखरे भावों को शब्द शब्द को गीतगीत को लय देंआओ कोलाहल को स्वर दें.वर्षा के जल को प्रवाहप्रवाह को दिशानदी को भागीरथ तट देंआओ..

बात ऐसी कर

बात ऐसी करजिसमें कुछ दम हो.जो न सेरों से, न छटाकों सेमगर मन से तुले.खो न जाए गूंजकर आकाश ..

फूल से बोली कली

फूल से बोली कली, क्यों व्यस्त मुरझाने में है? फायदा क्या गंध औ' मकरंद बिखराने में है?तू स्वयं को बांटता है, जिस घडी से तू खिलाकिन्तु उस उपकार के बदले में तुझको क्या मिला?देख मुझ को, सब मेरी खुशबू मुझी में बंद हैमेरी सुन्दरता है अक्षय, अनछुआ मकरंद है..

खुले नयन से सपने देखो

खुले नयन से सपने देखो, बंद नयन से अपने.अपने तो रहते हैं भीतर, बाहर रहते सपने.नाम रूप की भीड़ जगत में, भीतर एक निरंजनसुरति चाहिए अंतर्दृक को, बाहर दृक को अंजन.देखे को अनदेखा कर के अनदेखे को देखाक्षर लिख लिख तू रहा निरक्षर, अक्षर सदा अलेखा...

एक बची चिंगारी

एक बची चिंगारी चाहे चिता जला या दीप.जीर्ण थकित लुब्धक सूरज की लगन को है आँखफिर प्रचीति से उडा तिमिर खग, खोल सांज की पांखहुई आरती की तैयारी शंख खो दिया सीप....मिल सकता मन्वंतर क्षण चूका सको यदि मोलरह जायेंगे कालकंठ में माटी के फूल बोल..